Rath yatra Story
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगनाथ जी का जन्म होता है उस दिन प्रभु जगनाथ जी केबड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रत्न उतारकर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है 108 कलश से उनका शाही स्नान कराया जाता है और फिर यह मान्यता है की स्नान से प्रभु बीमार हो जाते है और उन्हें बुखार आ जाता है फिर उन्हें 15 दिन के लिए एक विशेष घर ओसर घर में रखा जाता है इस अवधी में प्रभु को मंदिर के सेवक औए बैध के अलावा कोई और नहीं देख सकता है
और इन 15 दिन की अवधी में प्रभु जी के प्रतिनिधि जो है अलारनाथ जी की प्रतिमास्थापित किया जाता है उनकी पूजा और अर्चना की जाती है| 15 दिन बित जाने के बाद भगवान जी स्वस्थ्य होकर के अपने कक्ष से बहार निकलते है और भक्तो को दर्शन देते है जिसे नव यौवन नेत्र उत्सव भी कहा जाता है इसके बाद द्वितीय दिन महाप्रभु श्री कृष्ण जी बड़े भाई बलराम के साथ और बहन सुभद्रा के साथ बहार राजमार्ग पर आते है रथ पर विराजमान होकर जो रथ यात्रा कहालती है और यह यात्रा उड़ीसा के पूरी में धूमधाम से निकलती है |
रथ यात्रा के पीछे की प्रमुख कथा है की
एक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है की पौराणिक काल में भगवान ने अपनी बहन की इच्छा को पूरा करने के लिए तिन रथ बनवाए और सुभद्रा जी को नगर घुमाने के लिए रथ यात्रा पर लेकर के गए जिसमे सबसे आगे वाला रथ भगवान बलराम का होता है बिच वाला रथ बहन सुभद्रा के और सबसे पीछे वाला रथ श्री कृष्ण जी का होता है|
इसी मान्यता के पीछे एक औए बड़ी कमाल की कहानी है की जब भगवान जगननाथ जी सुभद्रा जी को नगर घुमाने लेकर जाते है तो रास्ते में उनके मौसी का घर था वह गुंडी चाभी है वह पर सात दिनों के लिए ठहरे जो की हल साल यह रथ यत्र शुरू होते ही ऐसी परम्परा निभाई जाती है |
दूसरी मान्यता
एक और मान्यता के अनुसार जब श्री कृष्ण के मामा कंस उन्हें मारने की योजना बनायीं तब कंस ने अपने दरबारी अक्रूर को एक रथ के साथ गोखुल धाम भेजा और गोखुल में जाके श्री कृष्ण और बलराम को मथुरा आने का न्योता भेजवाया अक्रूर ने जो कहा उसके अनुसार श्री कृष्ण जी ने भाईबलराम ज के साथ रथ पर बैठे और मथुरा की रवाना हुए कहते है की गोकुल वासियेओ ने इस दिन को रथ यात्रा का स्थान माना और इसलिए भी जगन्नाथ जी की यात्रा निकलती है |
कब और कैसे जगन्नाथ मंदिर की स्थापन हुयी
जब द्वारिका में भगवान् श्री कृष्ण जी की अंतिम संस्कार किया जा रह था तब बलराम जी बहुत दुखी हुए अपने दुःख को लेकर वह अपने अनुज का मृत शरिर लेकर के समुद्र में डूबकर अपना अंतिम श्वास लेने के चल दिए और उनके पीछे बहन सुभद्रा भी अंतिम श्वास ली उसके बाद श्री कृष्ण जी का शव जगनाथ के पूरी में समुद्र के किनारे तैरता हु मिला और उसी जगह पर भव्य जगनाथ मंदिर की स्थापना की गयी और जिसमे भगवान श्री कृष्ण जी और बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी का मुर्तिया स्थापित की गयी
मूर्ति बनने की कहानी
और रजा इन्द्रधुन्म ने सपना देखा की भगवान की अस्थिया मुर्तियो के पीछे एक खोखली जगह बनाकर उसी में राखी जायेगी और यह सपना सच भी साबित हुआ और उन्हें अस्थिया मिली लेकिन अब सवाल यह था की भगवान की मुर्तिया बनाएगा कौन ? तो ऐसी मान्याता है की मूर्ति बनाने के लिए खुद भगवान विश्वक्रमा जी एक बूढ़े बढई बनकर वह आये औए उन्होंने राजेंद्र दमन को चेतवानी दी की उनके काम के बिच उन्हें रोका टोका जायेगा तो अधूरा काम छोड़कर चले जायेंगे
कुछ महीने बीत गए तो रजा के धैर्य टूट गया और और उन्हें लगा की अब मुझे मंदिर का दरवाजा खोलना होगा उसके बाद विश्वकर्मा जी काम को अधुरा ही छोड़कर के चले गए जिसके बाद राजा ने अधूरे बनी मूर्ति की मंदिर में स्थापित किया और श्री कृष्ण की अस्थिया थी उनकी मुती के पीछे बनी जो खोखली जगह में रख दी और इस तरीके से मंदिर और मंदिर की मूर्ति की स्थापना हुई
और हर 12 साल के बाद भगवान श्री कृष्ण जी के मंदिर में जो भगवान की पुरानि मुर्तिया है उनकी जगह पर नयी मूर्ति स्थापित की जाती है और मूर्ति की जो संरचना हो वो अधूरी ही रहती है |
रथ यात्रा से जुडी एक और मान्यता यह है की(तीसरी)
सतयुग में जी राजा इन्द्रधुम्न हुए उनकी रानी गुन्डिज भगवन विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी उनके महल में निम का पेड़ था राजा उस पेड़ के पास में यज्ञ करते the तो भगवान जी ने रानी के स्वप्न में आकर दर्शन दिए और कहा की निम् के ताने को जगन्नाथ जी के रूप मानकर पूजन शुरू कीजिये फिर रानी ने ने वैसे ही किया यज्ञ यज्ञ करने वाली जगह पर निम के ताने से तिन मुर्तिया बनवाई जो जगन्नाथ जी, उनके भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा जी के साथ दोबारा सपने में आये
और मंदिर स्थापित करने को कहा और कहा मंदिर स्थापित होने के बाद भी मै हर सात दिन के लिए तुम्हारे महल में आऊंगा फिर राजा और रानी ने मंदिर की स्थापना करवाए और मंदिर में मूर्ति को ले जाने के लिए रथ यात्रा का शुभारम्भ किया गया और बड़े धूमधाम से मंदिर में मूर्ति स्थापित की गयी तब से रथ यात्रा की आयोजन की जाती है
एक और चौथी कथा यह है की
यह कथा है की जब क्रिधं जी ने नींद में राधे राधे कहने लगे तो उनकी आठो पत्निया चौंक आगयी की कृष्ण जी अभी तक राधा की नहीं भूल पाए है तो सबने मिलकर माता रोहिणी से उनकी एअधा के संभाध को जानने की हट किया तो माता रोहिणी ने कहा ठीक है लेकिन सुभद्रा को दरवाजे पर पहरा के लिए भेज दो और कहना की कोई भी आये उनको अन्दर नहीं आने दे चाहे वो बलराम हो या श्री कृष्ण तब उन्होंने सुभद्रा को पहरा के लिए भेज दिया और माता रोहिणी राधा और कृष्ण की कथा सुनाने लगी
उस दौरान बलराम जी और कृष्ण जी द्वार पर पहुँच गए द्वार पर सुभद्रा कड़ी थी जो ध्यान से कथा सुन रही थी और बलराम और कृष्ण जी के आने पर सारी बात बता दिया और दरवाजे पर रोक दिया लेकिन महल के अन्दर से कृष्ण जी और राधा जी की कथा बाहर स्पष्ट सुनाई दे रही थी और भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी भी सुन रहे थे बहन सुभद्रा भी सुन रही थी
तीनो उस कथा को सुन विबल हो उठे और ऐसी अवस्थ आ गयी की हाथ पैर जो थे वो स्पष्ट नहीं दिखाई दे रही थी तभी वहां देव ऋषि नारद आ जाते है और उनके इस अवस्था को देखा एयर जब तीनो अपने पूर्ण अवस्था में लौटे तो उनसे नारद जी प्रार्थना किया की प्रभु आप तीनो के महासभा में लीं मूर्ति का दर्शन किया है और जो सामान्य जन है उनके दर्शन हेतु आप पृथ्वी पर सदैव सुशोभित रहे तो इसी दौरान प्रभु ने तथावास्तु कहा और कहते ही तभी से तीनो की प्रतिमा जगन्नाथ मंदिर है उसे स्वयं विश्वकर्मा जी ने बनाया था
इस प्रकार हर साल ओड़िसा के जगनाथ मंदिर यह रथ यात्रा निकलती है और इस साल यानि 2025 में यह 27 जून से होने वाली है अतः आज तक तीनो भाई बहन जगन्नाथ मंदिर में बिधमान है ये सारी कथाये थी जो श्री जगन्नाथ पूरी धाम से जी हुयी है |
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