Repo Rate
रेपो रेट में कटौती: भारत की मौद्रिक नीति पर आरबीआई का अहम फैसला
यह पोस्ट भारत की मौद्रिक नीति से जुड़े हालिया घटनाक्रमों को समझाता है, विशेष रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर इसे 5.50% (June 2025 में) करने के फैसले पर केंद्रित है। यह निर्णय वैश्विक आर्थिक मंदी के माहौल में लिया गया है, खासकर अमेरिका द्वारा बढ़ाए गए टैरिफ (शुल्क) की पृष्ठभूमि में — जो कि राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों के चलते और अधिक उग्र हो गई हैं।
मुख्य बिंदु:
- RBI ने रेपो रेट में 50 बीपीएस की कटौती की(june 2025), जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सके।
- वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, विशेष रूप से अमेरिका के टैरिफ, भारत की अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहे हैं।
- रेपो रेट घटने से बैंक सस्ते लोन देंगे, जिससे उपभोक्ता और व्यापार दोनों को लाभ होगा।
- RBI ने अपनी नीतिगत स्थिति ‘न्यूट्रल’ से बदलकर ‘अकोमोडेटिव’ कर दी है, जिसका मतलब है कि भविष्य में और कटौती संभव है।
- भारत की GDP ग्रोथ की चिंता ने RBI को यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया, भले ही इससे महंगाई का खतरा भी बढ़े।
- बैंकों पर दबाव रहेगा कि वे इस दर में कटौती का लाभ आम लोगों तक पहुंचाएं।
- वीडियो के अंत में दर्शकों से हालिया बजट में दिए गए सेक्टोरल इंसेंटिव पर राय मांगी गई।
रेपो रेट कटौती का तात्कालिक असर:
- RBI का यह निर्णय दिखाता है कि वह भारतीय अर्थव्यवस्था को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करना चाहता है। GDP ग्रोथ के सुस्त होने के संकेतों के बीच, रेपो रेट घटाने से बैंकों के लिए उधारी की लागत कम हो जाती है — और इससे उम्मीद की जाती है कि वे उपभोक्ताओं और व्यवसायों को सस्ते लोन देंगे।
- इससे खपत और निवेश में इज़ाफा हो सकता है, जिससे आर्थिक रफ्तार दोबारा पकड़ेगी।लेकिन यह रणनीति इस धारणा पर टिकी है कि बैंक इसका लाभ आम जनता तक पहुंचाएंगे — जो हमेशा सुनिश्चित नहीं होता।
क्या है Repo और reverse repo rate की कहानी
इसकी कहानी open market operation से होती जहाँ rbi सरकार की bond को खरीदती और बेचती है उचित दाम पर इसके द्वारा rbi economy में पैसे का बढ़ोतरी और कटौती करती है जिससे economy अपने pace पर रहती है |
इसी से जुडी repo rate और reverse repo rate की कहनी आप सब जोग यह तो जानते होंगे बांको में लोन का लें दें होता रहता है तो यदि rbi किसी व्यवसायिक बैंक को पैसे लोन पर देती है और जो इंटरेस्ट rate होता है जिसपे rbi व्यवसायिक बैंक को देती उस rate को repo rate कहते है
उसका बिलकुल उल्टा होता है reverse repo rate जिसमे rbi बैंक से लोन लेती है और जिस rate पर लेती उसे reverse repo rate कहते है |
लेकिन यह जानना भी काफी जरुरी है rbi ऐसा क्यों करती है क्योकि यह हमेशा rbi द्वारा समयानुसार तय किया जाता है और रबी ऐसा इसलिए कटी की देश की economy स्थिर रहे क्योकि ऐसे बहुत से कारक है जो देश की economy को अस्थिर कर देते है जिसको बैंक स्थिर करने के लिए ऐसा निर्णय लेती है इसमें बैंक क्या करती है की इंटरेस्ट रेट बढ़ा देती है जिससे बैंक की borrowing रुक जाती है और बैंक लोन देने में असमर्थ हो जाता है और देश की economic गतिबिधि स्थिर हो जाती है |
वैश्विक दबाव:
वीडियो इस बात पर जोर देता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर अमेरिका के टैरिफ का सीधा असर पड़ रहा है।
- खासतौर पर जब अमेरिका ने चीन पर 104% तक का आयात शुल्क लगाया है, इससे वैश्विक सप्लाई चेन पर असर पड़ा है।
- भारत के निर्यात की मांग घट सकती है, जिससे नीति निर्माताओं को घरेलू रणनीतियों में इन बाहरी दबावों को ध्यान में रखना पड़ रहा है।
उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव:
रेपो रेट घटने से लोन की ब्याज दरों में कमी की उम्मीद है, जिससे हिचकिचाते उपभोक्ता फिर से खर्च करने को तैयार हो सकते हैं।, घर, वाहन जैसे बड़े खर्च वाले सेक्टर में मांग बढ़ सकती है, जिससे उत्पादन और सेवा क्षेत्र में भी गति आएगी।
विकास बनाम महंगाई का संतुलन:
- एक तरफ RBI ग्रोथ को बढ़ाने के लिए दरें घटा रहा है, तो दूसरी ओर महंगाई भी एक बड़ा खतरा है।
- ज्यादा पैसा सिस्टम में आने से डिमांड बढ़ सकती है, जिससे कीमतें भी ऊपर जा सकती हैं।
इसलिए RBI को नीतियों में एक संवेदनशील संतुलन बनाना होगा — ग्रोथ बढ़े लेकिन महंगाई काबू में रहे।
नीतिगत रुख में बदलाव:
‘अकोमोडेटिव’ रुख अपनाना यह दिखाता है कि RBI अब आगे भी दरों में कटौती के लिए तैयार है।, यह संकेत है कि फिलहाल RBI विकास को प्राथमिकता दे रहा है, महंगाई के जोखिम के बावजूद।
बैंकों पर असर:
रेपो रेट घटने से बैंकों को लोन देने में फायदा होता है, लेकिन नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIM) कम हो सकता है।, कई बार बैंक डिपॉजिट रेट कम नहीं करते, लेकिन लोन दरें घटा देते हैं — इससे लाभ असमान रूप से बंटता है।
इस प्रकार भारत की अर्थव्यवस्था इस समय बाहरी दबावों और आंतरिक मंदी की आशंकाओं से जूझ रही है। ऐसे में RBI द्वारा रेपो रेट में कटौती एक बड़ा और रणनीतिक कदम है।लेकिन आगे इस पर नजर रखनी होगी कि बैंक कैसे रिएक्ट करते हैं, उपभोक्ता कितना खर्च करते हैं, और महंगाई कितनी बढ़ती है।